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कविता

समयगंधा

भवानीप्रसाद मिश्र


तुमसे मिलकर
ऐसा लगा जैसे
कोई पुरानी और प्रिय किताब
एकाएक फिर हाथ लग गई हो

या फिर पहुँच गया हूँ मैं
किसी पुराने ग्रंथागार में

समय की खुशबू
प्राणों में भर गई

उतर आया भीतर
अतीत का चेहरा

बदल गया वर्तमान
शायद भविष्य भी।

 


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हिंदी समय में भवानीप्रसाद मिश्र की रचनाएँ